ज्ञान और समानता के प्रणेता: संत गुरु घासीदास जी के प्रेरणादायक सिद्धांत और सतोपदेश
छत्तीसगढ़ की पावन धरा पर, जहाँ सतनाम पंथ की अमृतधारा प्रवाहित हुई, वहीं एक महान संत का जन्म हुआ – परम पूज्य संत गुरु घासीदास बाबा जी। 18 दिसंबर 1756 को गिरौदपुरी धाम में जन्मे गुरु घासीदास जी ने समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों और ऊंच-नीच के भेद को मिटाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने सत्य, अहिंसा और समानता पर आधारित एक ऐसे समाज की कल्पना की, जहाँ हर मानव समान हो और आपसी प्रेम व सद्भाव से रहे।
गुरु घासीदास बाबा जी ने अपने दिव्य ज्ञान और सरल उपदेशों के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन को नई दिशा दी। उनके सिद्धांत और उपदेश केवल सतनाम पंथ के अनुयायियों के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
संत गुरु घासीदास बाबा जी के सात सिद्धांत –
गुरु घासीदास बाबा जी ने अपने अनुयायियों को जीवन जीने के सात आधारभूत सिद्धांत दिए, जो मानव कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं :-
- सतनाम सतपुरुष में अटल विश्वास रखें: उनका मानना था कि सत्य ही ईश्वर है और उसी पर अटूट श्रद्धा रखनी चाहिए।
- मूर्ति पूजा नहीं करना: उन्होंने बाह्य आडंबरों और मूर्ति पूजा का खंडन कर सत्यनाम के आंतरिक स्वरूप पर बल दिया।
- जात-पात से ऊपर उठकर मानव हित के लिए काम करें: गुरु जी ने जातिवाद के बंधनों को तोड़कर सभी मनुष्यों को समान मानने और एक-दूसरे के हित के लिए कार्य करने का संदेश दिया।
- जीव हत्या नहीं करें: अहिंसा उनके सिद्धांतों का मूल था। उन्होंने किसी भी जीव की हत्या न करने और सभी प्राणियों के प्रति दया भाव रखने की शिक्षा दी।
- नशा नहीं करें: उन्होंने नशाखोरी को सामाजिक बुराई मानते हुए उससे दूर रहने की प्रेरणा दी।
- दूसरों की स्त्री को माता तुल्य सम्मान करें: नारी सम्मान पर बल देते हुए उन्होंने सभी स्त्रियों को माता के समान आदर देने का उपदेश दिया।
- बैलों को अधिक काम न कराएं: पशु कल्याण के प्रति उनकी संवेदनशीलता दर्शाते हुए उन्होंने किसानों को बैलों पर अत्यधिक बोझ न डालने की सलाह दी।
संत गुरु घासीदास बाबा जी के सतोपदेश (सत्य उपदेश) :-
गुरु घासीदास बाबा जी के उपदेशों में जीवन का गूढ़ सार छिपा है। उनके सतोपदेश मानव को नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में मार्गदर्शक हैं :-
- सत्य ही मानव का आभूषण है।
- दुखियों की मदद करना सबसे बड़े धर्म का काम है।
- सत्य को जानो, समझो, परखो तब अपनाओ।
- मृत्यु के बाद पितरों के नाम से दिखावा नहीं करें।
- सत्य को अपने आचरण में उतारो।
- सतनाम घट-घट में समाया है।
- सत्य ही ईश्वर है, ईश्वर ही सत्य है।
- सभी जीवों पर दया करो।
- मानव-मानव एक समान।
- अंधविश्वास, रूढ़िवाद और बाह्य आडंबर से दूर रहो।
- माता-पिता और गुरु का सम्मान करो।
- मेहनत की रोटी ही सुख का आधार है।
- सत्य ज्ञानी को गुरु बनाओ।
- सभी संत-समाज मेरे अपने हैं।
- क्रोध और भ्रम को त्यागने वालों का भला होता है।
- तालाब बनाओ, कुआं बनाओ, दुर्गम को सुगम बनाओ, लेकिन बाह्य आडंबर के लिए मंदिर नहीं।
- मां मां होती है, उनका दूध पीयो, गाय का नहीं। (यह उपदेश मां के महत्व और मानव दूध के पोषण मूल्य को दर्शाता है, जिसका अर्थ यह भी हो सकता है कि प्रकृति के हर रिश्ते को उसके मूल स्वरूप में सम्मान दें।)
- पूरे साल का खर्च इकट्ठा होने के बाद, भक्ति भजन में खर्च करो। (अर्थात् पहले अपनी जिम्मेदारियां पूरी करो, फिर धर्म-कर्म में लगाओ।)
- यह धरती आपकी है, इसका श्रृंगार करो।
- झगड़े का कोई जड़ नहीं होता, आंखों का धोखा होता है।
- अपने धन को सबके लिए समझो, लेकिन दूसरों का धन तुच्छ के समान है। (सामूहिकता और ईमानदारी पर जोर।)
- न्याय सबके लिए बराबर होता है।
- मेहमान को साहेब गुरु के समान जानो।
- इसी जन्म में सुधरना ही सच्चा है।
- सतनाम का ध्यान करो।
- मुझे मेरे संत समाज को किसी से बड़ा कहने पर मुझे बहुत कष्ट होगा। (समानता और विनम्रता का भाव।)
- धर्म-कर्म के नाम पर दान करो, न लो। (निःस्वार्थ सेवा का संदेश।)
- जुआ और चोरी से दूर रहो।
- खेतों के लिए पानी और संतों के लिए वचनों को संभाल कर रखो।
- पशुबलि अंधविश्वास है, नहीं देना चाहिए।
- जान से मरना भी मरना है और सपने में भी मरना मरने के समान है। (मृत्यु की अटल सच्चाई और उसके मानसिक प्रभाव पर चिंतन।)
- आने वाले को रोको नहीं और जाने वाले को टोको नहीं। (जीवन के प्रवाह को स्वीकार करने का दर्शन।)
- चुगली और निंदा सबको बिगाड़ता है।
- धन को व्यर्थ न खर्च करो, अच्छे काम में लगाओ।
- किसी के लिए कांटे न लगाओ। (दूसरों को कष्ट न देने का संदेश।)
- किसी का दुःख उतना ही अधिक है जितना आपका और मेरा है। (समानुभूति का महत्व।)
- नर और नारी एक समान।
- हृदय से आभार ही असली आभार है।
- खान-पान में सात्विक रहो।
- दुश्मन के लिए भी प्रेम रखो।
- अपने आप को हीन और कमजोर मत समझो।
- पानी पियो छान के, गुरु बनाओ जान के। (अर्थात् कोई भी कार्य करने से पहले अच्छी तरह विचार कर लें।)
संत गुरु घासीदास बाबा जी के ये सिद्धांत और उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वे सदियों पहले थे। उनके विचारों का पालन कर हम एक समतावादी, सद्भावपूर्ण और शांतिपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं। गिरौदपुरी धाम उनकी शिक्षाओं का प्रतीक है, जो हमें हमेशा सत्य और मानवता के पथ पर चलने की प्रेरणा देता रहेगा।